Sunday, November 23, 2008

तलाश

तलाश है, एक और देवदास की,
पारो तो फिर भी मिल जाती है
नही मिलते है तो सच्चे देवदास।
पारो आज भी चढ़ जाती है विवाह की वेदी पर ,
कभी इज्जत के नाम पर ,
कभी पैसो के नाम पर ,
पर देवदास अब धूल नही फांकते ,
आँसू नही बहाते,
पारो की देहरी पर एडिया रगड़ कर नही मरते ,
क्योकि मर जाते है जज्बात,
बह जाते है आँसू
नई पारो की तलाश मे

Sunday, November 16, 2008

जिंदगी

कहीं पढा था,

कि इन बंद कमरों में मेरी साँस घुटी जाती है ,

खिड़कियाँ खोलता हूँ तो जहरीली हवा आती है ।

क्या हम भी कभी इन रास्तो से दो - चार नही होते ,

मरते है पर जीने कि चाह नही खोते ।

सिसकते - सिसकते ही सही गम खुशियों में बदल जाते है ,

गिरते - उठते ही सही जीना हम सीख जाते है ।