Sunday, November 23, 2008

तलाश

तलाश है, एक और देवदास की,
पारो तो फिर भी मिल जाती है
नही मिलते है तो सच्चे देवदास।
पारो आज भी चढ़ जाती है विवाह की वेदी पर ,
कभी इज्जत के नाम पर ,
कभी पैसो के नाम पर ,
पर देवदास अब धूल नही फांकते ,
आँसू नही बहाते,
पारो की देहरी पर एडिया रगड़ कर नही मरते ,
क्योकि मर जाते है जज्बात,
बह जाते है आँसू
नई पारो की तलाश मे

1 comment:

santosh kumar gupta said...

aap kk pryas kbile tareef hai. Aap is feeling ko bnaye rakheyega.shabdo per dhayan de. umeed karte hain aage bhi Aap ki rachnaya pdne ko milegi